Biography of Chandrashekhar Azad चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनी

Biography of Chandrashekhar Azad amp; चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनी 

27 फ़रवरी, 1931 का वह दिन था चंद्रशेखर आज़ाद जी अपने साथी सुखदेव राज के साथ इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क बैठकर विचार–विमर्श कर रहे थे कि तभी वहां अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया। चन्द्रशेखर आजाद ने सुखदेव को तो भगा दिये पर खुद अंग्रेजों का अकेले ही सामना करते रहे। अंत में जब अंग्रेजों की एक गोली उनकी जांघ में लगी तो अपनी बंदूक में बची एक गोली को उन्होंने खुद ही मार ली और अंग्रेजों के हाथों मरने की बजाय खुद ही आत्महत्या कर ली। कहते हैं मौत के बाद अंग्रेजी अफसर और पुलिसवाले चन्द्रशेखर आजाद की लाश के पास जाने से भी डर रहे थे।

अल्फ्रेड पार्क में घटना के वक्त मौजूद लोगों ने कई किताबों के जरिये बताया है कि खुद नॉट बावर ने अपनी टोपी उतारकर आजाद के शव को सलामी दी थी। जब एसपी मेजर्स को गोलीबारी की ख़बर मिली तो उन्होंने सशस्त्र रिज़र्व पुलिस के जवानों को एल्फ़्रेड पार्क भेजा। लेकिन जब तक ये लोग वहाँ पहुँचे, लड़ाई ख़त्म हो चुकी थी। जाते समय नॉट बावर ने हिदायत दी कि चंद्रशेखर आज़ाद की लाश की तलाशी लेकर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाये। आज़ाद के शव की तलाशी लेने पर उनके पास से 448 रुपये और 16 गोलियाँ मिलीं।

यशपाल अपनी आत्म-कथा में लिखते हैं कि ‘संभवत आज़ाद की जेब में वही रुपये थे जो नेहरू ने उन्हें दिये थे। आज़ाद के शरीर का पोस्टमार्टम सिविल सर्जन लेफ़्टिनेंट कर्नल टाउनसेंड ने किया। उस समय दो मजिस्ट्रेट ख़ान साहब रहमान बख़्श क़ादरी और महेंद्र पाल सिंह वहाँ मौजूद थे।आज़ाद के दाहिने पैर के निचले हिस्से में दो गोलियों के घाव थे. गोलियों से उनकी टीबिया बोन भी फ़्रैक्चर हुई थी।

एक गोली दाहिनी जाँघ से निकाली गई। एक गोली सिर के दाहिनी ओर पेरिएटल बोन को छेदती हुई दिमाग में जा घुसी थी और दूसरी गोली दाहिने कंधे को छेदती हुई दाहिने फ़ेफड़े पर जा रुकी थी। विश्वनाथ वैशम्पायन लिखते हैं, ‘आज़ाद का शव चूँकि भारी था, इसलिए उसे स्ट्रेचर पर नहीं रखा जा सका. चंद्रशेखर आज़ाद चूँकि ब्राह्मण थे, इसलिए पुलिस लाइन से ब्राह्मण रंगरूट बुलवाकर उन्हीं से शव उठवाकर लॉरी में रखा गया था।

उनकी मृत्य के बाद पूरा इलाहाबाद शोक में डूबा था लोगों के आखों पर गुस्से की ज्वाला धधक रही थी लोगों का बड़ा हुजूम अलफ्रेंड पार्क में जिस पेड़ के पास आज़ाद जी ने अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने आप को गोली मारी थी की तरफ बढ़ता जा रहा था। और उस पेड़ पर लगी गोली के बहुत सारे निशान को देखकर लोगों ने उसको चूमना सुरु किया किसी से उसमे फीता बाँधा कोई गले लगाया, लोग वहाँ फूलमालाएं चढ़ाने और दीपक जलाने लगे…

अंग्रेजो को काफी डर था कि कही हिंसा न भड़क जाये इसलिये रातों-रात उस पेड़ को कटवा दिये…
जिस समय आज़ाद जी के शहीद होने की सूचना मिली भटुकनाथ अग्रवाल इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीएससी के छात्र थे और हिन्दू छात्रावास में रहते थे।

बाद में उन्होंने लिखा कि 27 फ़रवरी की सुबह जब वो हिन्दू बोर्डिंग हाउस के गेट पर पहुँचे तो उन्हें गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी। थोड़ी देर में वहाँ विश्वविद्यालय के छात्रों की बड़ी भीड़ जमा हो गई थी। पुलिस कप्तान मेजर्स भी वहाँ पहुँच चुके थे। उन्होंने छात्रों से तितर-बितर होने के लिए कहा और किसी तरह छात्रों को वहाँ से हटाया विश्विद्यालय के छात्र उस घटना को सुनकर काफी आक्रोशित थे….
आज़ाद के बलिदान की खबर जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू को मिली। कमला नेहरू आज़ाद जी को अपना भाई मानती थी।
जब तक पुरुषोत्तम दास टंडन और कमला नेहरू और तमाम कांग्रेसी नेता इलाहाबाद में रसूलाबाद घाट पर पहुँचे, आज़ाद जी का शव जल चुका था।


अगले दिन पूरा इलाहाबाद में अंग्रेजी सरकार ने धारा 144 लगा दी थी उस धारा को तोड़कर पुरुषोत्तम दास टंडन, कमला नेहरू और तमाम कांग्रेसी नेताओं के नेतृत्व में बड़ी संख्या में लोग पूरे शहर में आजाद की अंतिम यात्रा में पहुँचे इस जुलूस में इतनी ज्यादा भींड़ थी कि देखते ही देखते आज़ाद जी की सारी राख को लोगो ने अपनी मुट्ठी में ले लिया कोई माथे पर लगाया कोई अपने घर ले जाने लगे इलाहाबाद की मुख्य सडकों पर जाम लग गया। ऐसा लग रहा था जैसे इलाहाबाद की जनता के रूप में सारा हिन्दुस्तान अपने इस सपूत को अंतिम विदाई देने उमड पड़ा हो।

इलाहाबाद में उनके जाने के बाद शोक की लहर इतनी ज्यादा थी कि लोग उस दिन अपने घर मे चूल्हे तक नही जलाये…
कमला नेहरू जी ने एक पत्र के माध्यम से लिखी कि वीर सपूत आज़ाद जी जिस पेड़ के नीचे शहीद हुए है अंग्रेजो ने उस पेड़ को रातों-रात कटवा दिये, मैं उसी स्थान पर उनकी याद में एक पेड़ के एक बीज बो कर आई हूं… मैं और पूरा शहर उनकी जाने के बाद इस दुःख से काफ़ी आहत है…
आज अमर बलिदानी आज़ाद जी की पुण्यतिथि है उनकों नमन करते हुए हृदय से भावपूर्ण सच्ची श्रद्धांजलि
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