UPSC एस्पिरेंट की ज़िंदगी के खट्टे-मीठे अहसासों की कहानी

for_UPSC_Aspirant हर UPSC एस्पिरेंट की ज़िंदगी के खट्टे-मीठे अहसासों की कहानी – 

 ✅ IAS अफ़स बनने का जुनून भारत में हमेशा से एक फ़ेवरेट जुनून रहा है। UPSC का एग्ज़ाम देश का सबसे मुश्किल एग्ज़ाम माना जाता है। हर कोई ग्रेजुएट एक बार तो इस एग्ज़ाम के बारे में सोचता ही है। कई लोग अपने इस सपने को पूरा करने छोटे शहरों से झोला उठाकर दिल्ली जैसे बड़े शहरों की ओर निकल पड़ते हैं, ‘aspirants’ सीरीज़ के अभिलाष, गुरी, एस.के., धैर्या और संदीप की तरह।

हर साल लाखों-लाख युवा इस एग्ज़ाम के लिए दिन-रात एक करते हैं और अपनी क़िस्मत आज़माते हैं। इनमें से फ़ाइनली लगभग 700-800 कैंडिडेट फ़ाइनल लिस्ट में अपना स्थान बना पाते हैं और अगर ख़ाली IAS की बात करें, तो हर साल देश भर में सिर्फ़ 180 लोग IAS बनते हैं।

IAS बनने के संघर्षों और उतार-चढ़ावों से भरे सफ़र की हर किसी की एक कहानी होती है। दिल्ली, इलाहाबाद, बनारस पटना, जयपुर, इंदौर, बैंगलोर, हैदराबाद और जाने कितने शहरों के ऐसे इलाक़े, जहाँ कोचिंग संस्थानों और बुक सेलर्स की भरमार होती है। दिल्ली के ऐसे ही पढ़ाकू इलाक़े ‘ओल्ड राजिंदर नगर’ के तीन दोस्तों की तैयारी की बेहतरीन कहानी है ‘Aspirants’।

TVF ने इस सीरीज़ में कमाल किया है। तैयारी के दौरान एक स्टूडेंट की रोज़मर्रा की जद्दोजहद, टीचर-कोचिंग और ऑप्शनल सब्जेक्ट, स्टडी मैटेरियल को लेकर भयंकर कंफ्यूजन, एक कई साल से attempts दे रहे किसी बाबा टाइप सीनियर का ज्ञान, दोस्ती-यारी-रिलेशनशिप का फच्चर, मकानमालिक से रोज़ की किचकिच, रिक्शा और सरकारी बसों से दिल्ली की गालियाँ नापना; सीरीज़ के राइटर्स ने स्टूडेंट्स की ज़िंदगी और उनके संघर्षों का कोई भी पहलू इन 5 एपिसोड्स में नहीं छोड़ा है।

स्टूडेंट चाय गुमटी पर देश-दुनिया के बड़े-बड़े मुद्दों पर ऐसे चर्चा करते हैं, जैसे आज ही सारे नेशनल-इंटरनेशनल मुद्दे हल कर देंगे। टीन दोस्तों के एक ‘ट्राइपोड’ जैसे क्लोज़ ग्रुप में अगर एक दोस्त फ़ाइनली सलेक्ट हो जाए, तो दोस्ती की समीकरण किस तरह बदलती हैं। संघर्ष के दिनों की दोस्तियाँ कैसे ज़िंदगी भर एक मीठा सा अहसास बनाए रखती हैं। तैयारी के दौर के ये ये सारे अहसास इस सीरीज़ में बेहतरीन ढंग से पिरोए गए हैं।

भारत के आम साधारण जिले के एक युवा कलेक्टर (डी.एम.) के काम-काज के साथ उसकी निजी ज़िंदगी की उलझनों को इस मिनी सीरीज़ में बख़ूबी फ़िल्माया गया है। ‘मोहभंग’, ‘बेपरवाह’ और ‘धागा ये टूटे ना’ जैसे बेहतरीन गाने हर किसी aspirant को nostalgia महसूस कराते हैं। कलेक्टर साहब अभिलाष शर्मा (नवीन कस्तूरिया), संदीप (सनी हिंदुजा), एसके (अभिलाष थपलियाल) और गुरी (शिवांकित परिहार) की एक्टिंग शानदार है। डायरेक्टर, क्रियेटर और राईटर की जितनी तारीफ़ की जाए, कम है।

मैं पूछना चाहता हूँ कि ‘इतनी क्रियेटिविटी कहाँ से लाते हो अरुणाभ भाई? ख़ैर, इस मुश्किल दौर में अपने मूड को बेहतर बनाने का अच्छा मौका है। जिन्होंने नहीं देखा है, YouTube पर Aspirants देख डालिए, अच्छा लगेगा। अंत में हिन्दी के महान कवि कुँवर नारायण की कुछ पंक्तियाँ, जो इस सीरीज़ के आख़िरी एपिसोड में इस्तेमाल की गई हैं –

“कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं, हमारे चारो ओर नहीं। कितना आसान होता चलते चले जाना यदि केवल हम चलते होते बाक़ी सब रुका होता। मैंने अक्सर इस ऊल-जुलूल दुनिया को दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है।

शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं कि सब कुछ शुरू से शुरू हो, लेकिन अंत तक पहुँचते पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं। हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती कि वह सब कैसे समाप्त होता है जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था हमारे चाहने पर। दुर्गनों और ऊँचे र्वतों को जीतते हुए जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे,

तब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब तुममें और उन त्थरों की ठोरता में, जिन्हें तुमने जीता है। जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ का पहला तूफ़ान झेलोगे और कांपोगे नहीं, तब तुम पाओगे कि कोई फर्क़ नहीं सब कुछ जीत लेने में और अंत तक हिम्मत न हारने में।’

CHAIRMAN amp; MANAGING DIRECTOR

मुझे किसी वि की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं, जो एक फल व्यक्ति की ज़िंदगी के केलेपन को ख़ूबी याँ करती हैं –

सने चाहा कि उसके चारों ओर सागर हो,

ज जब उसके चारों ओर सागर फैला है,

वह स्वयं एक द्वीप की भाँति,

निर्जन और केला है’।

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