Hindi Poetry दवा असर ना करे तो नज़र उतारना भी जानती है माँ है जनाब, वो

Hindi poetry (शायरी) वा असर ना करे तो नज़र
उतारना भी जानती है
माँ है जनाब, वो कभी हा
नहीं मानती हैं |

CHAIRMAN amp; MANAGING DIRECTOR

पके “श्क़” का ऐलान बने बैठे हैं,
हम फ़क़ीरी में भी सुल्तान बने बैठे हैं,
मैं अपनी पहचान बताऊँ तो बताऊँ कैसे,
बकि हम ख़ुद तेरी हचान बने बैठे हैं।

ब आ गए हो आप तो
आता नहीं कुछ याद,
वरना कुछ हमको आप से
हना ज़रूर था।
याद कर रहे थे बस शिकवे करने को तुमसे,
तुम आए तो श्क़ है,ये बात दोहरा दिए..

मुझे पहले लगता था, जाति मसला है,,,
मैं फिर समझ गया श्क़ कायनाती मसला है….

क गलती रोज कर रहे है हम ,
जो मिलेगी नहीं , उसी पे र रहे हैं हम |

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