IAS aspirant story आईएएस आकांक्षी कहानी …..

IAS aspirant story amp; आईएएस आकांक्षी कहानी …..

ग्रेजुएशन के दौरान ही मुझे आईएएस का भूत सवार हुआ .. और उसकी वजह थी कि मैं एम्बेस्डर गाड़ी और जिलाधिकारी के रुतबे की तरफ खिंचा सा जा रहा था … अब सोच तो लिया था लेकिन आईएएस बनूँ..

#कैसे ..? .

..हम तो ठहरे मध्यम किसान परिवार से जहाँ सरकारी अध्यापक का ओहदा परिवार में किसी मिनिस्टर से कम नहीं होता था ….अब हम किसे बताएं कि हम आईएएस बनना चाहते हैं ? … परिवार में बताएँगे तो सब मजाक बनाएंगे और उनसे कोई फायदा होने वाला भी नहीं है क्योंकि उन्हें पता ही नहीं इन सबके बारे में ….

..जैसे तैसे एक सज्जन भैया ने थोड़ा बहुत बताया लेकिन इसके बीच में मेरा 5 महीने का समय बर्बाद हो गया था ..खैर कुछ तो पता चला ….लेकिन अब मुश्किल और बड़ी थी ..पहाड़ जैसा पाठ्यक्रम …हजारों की किताबें लेनी पड़ेंगी …कहाँ से लाएंगे इतना पैसा ? …मां – पापा तो देने से रहे क्योंकि उन्हें कुछ बताया भी नहीं ना

अब फैसला किया कि एक एक करके किताबे खरीदेंगे यानि एक जब तैयार हो जाएगी तो दूसरी लेंगे … इससे बोझ भी नहीं पड़ेगा …पहली इतिहास की किताब लाये बड़े ही खुश मन से कि जी जान लगा देंगे ..शाम को किताब खोली कुछ समझ में ना आये …अब बड़ी समस्या …हम तो साइंस वर्ग से रहे ..इतिहास तो 8 में ही छोड़ आये थे ….

अब हवा ना लग रही बिलकुल …जैसे तैसे जबरदस्ती दिमाग में चढाने की कोशिश की तो इतिहास के ” सन् ” में उलझ गए …एक को तैयार करो तो दूसरा भूल जाये …. कभी कभी तो किसी को पैदा होने से पहले ही मार देते …और कभी कभी तो हल्दीघाटी में मुहम्मद गोरी और पृथ्वीराज को लड़ा देते बैंड बज गयी दिमाग की उस किताब को तैयार करने में …खैर तैयार हुआ हो या ना हुआ हो ..लेकिन किताब के पन्ने पूरे हो गए ….

अब भूगोल लाये ….उसे पढ़ने के बाद तो पता चला कि दुनिया इतनी बड़ी है … खैर भूगोल पढ़ने से कुछ फायदा तो हुआ जैसे “भगवान पानी नहीं बरसाता है बल्कि ये मानसून वाला लोचा है” ये बात पता चली ..खैर ये सब चल ही रहा था …अचानक यमदूत टाइप का एक दोस्त आया घर … बड़े घर का था तो बड़े शहर में पढता था .. उसे मैंने आईएएस के बारे में बता दिया … अब भइया उसने जो हवा भरी कि दो तीन दिन तक तो आईएएस का ख्याल भी मन में ना आया …

कहने लगा कि “आईएएस बड़े लोगो के लिए हैं , जिन्हें बहुत अंग्रेजी आती हो … इसके लिए बड़ी कोचिंग करनी पड़ती है ..जहाँ फीस लाखों में होती है …बड़े बड़े शहरों में हजारों लड़के कोचिंग करते हैं ,… और सबसे बड़ी बात कि सीट केवल 1000 ही होती हैं .. ” अब किताब की तरफ देखने की भी हिम्मत ना पड़ रही थी … जैसे तैसे कॉलेज एक और सज्जन गुरु जी से पूछा ..तो उन्होंने बड़ी नम्रता से ना सिर्फ मुझे रास्ता दिखाया बल्कि थोड़ा हौसला अफजाई भी की

..एक बार फिर मैं तैयार था कोशिश करने के लिए .. .. 1 साल बीत रहा था और इस साल मैंने सिर्फ आईएएस के बारे में जाना ही था . खैर इतना ही काफी था कि अब मैं सब कुछ जान गया था ..ग्रेजुएशन फाइनल ईयर के पेपर आ गए सोचा इसके बाद फ्री होकर ताबड़तोड़ पढ़ाई करूँगा …पर कहाँ हो पता है एक दिन ज्यादा पढ़ लो तो दूसरे दिन किताबें उठाने तक की हिम्मत नहीं पड़ती … किसी दिन का कोई ना कोई ऐसा सेकंड भी आता था कि लगता था कि ” अब छोड़ दे हमसे ना हो पाएगा ” ..पर वो एम्बेस्डर गाड़ी और उस पर नीली बत्ती और ias ,वाला रुतबा वापस खड़ा कर देती थी

..समय गुजर रहा था यूँ ही .. किताबें अभी भी परेशान करती हैं … न्यूज़ पेपर में भी कभी कभी उलझ जाता हूँ … और अभी भी कोई खरदूषण ये कहने को मिल ही जाता है कि “रहन दे बेटा तुझसे ना हो पायेगा” …. इतना सब सुनकर भी मन अब विचलित नहीं होता … मैंने भी फैसला कर लिया है कि आईएएस अगर कुरुक्षेत्र है तो मैं भी एक योद्धा हूँ

...जरुरी तो नहीं कि हर रण फतह हो ….विजेता की तरह शहीद का नाम भी शिद्दत से लिया जाता है …. अर्जुन ही नहीं अभिमन्यु भी एक योद्धा ही था …तो मैं आईएएस का रण छोड़कर नहीं भागूंगा भले ही यहाँ वीरगति ही क्यों ना मिल जाये ” –

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